जिन पत्रकारों को पत्रकारिता में ख़बरों पर तमीज़ सीखनी हो, वह पत्रकार रमेश से तालमेल क्यों नही बनाते ?
अनूपपुर/ वैसे तो रमेश 14 वर्ष शासन को सेवा देकर राज्य व केन्द्र सरकार की कन्धों का बोझ कुछ तो कम किये थे। अपितु प्रशासनिक सेवा में रहते हुए पत्रकारों को ख़बरों पर तमीज़ बांटने का कार्य भी करते रहे हैं, इस बात से अनूपपुर के पत्रकार अंजान थे। अब चूंकि जिन बुद्धिजीवियों को लेकर रमेश ने राजनीति में छलांग लगाया है, वह स्वयं तमीज़रहित हैं। फिर ऐसे में 14 वर्ष में प्रशासनिक सेवा से कमाया तमीज़ रमेश किन्हें बांटें इस दुविधा में पड़े है।
अब रमेश चुनाव लड़ने के साथ-साथ अनूपपुर में पत्रकारों को तमीज़ बांटने व ख़बरों के प्रकाशन का चयन भी करेंगे इसके लिए अनूपपुर के पत्रकार ख़बरदार रहें। या यूं कहिए जिन-जिन पत्रकारों को पत्रकारिता में तमीज़ न हो वह पत्रकार रमेश सिंह से तालमेल बना कर उनके द्वार पर लाइन लगाकर खड़ा हों जाएं। इससे फ़ायदा यह होगा कि जिन पत्रकारों की पत्रकारिता में जऱा भी तमीज़ होगा, वह पत्रकार और तमीज़दार पत्रकार हो जाएंगे। और न भी हुए तो रमेश सिंह की विरुदावली लिखने योग्य तो हो ही जाएंगे। जैसा अख़बारों की सुर्खियों में छाए रहते हैं।
आज की राजनीति में सबसे बड़ी दुविधा यह है कि राजनीति में उतरने वाले राजनीतिज्ञ हर तबके को अपने इसारे में नचा सकने के बेड़ा उठाना चाहते हैं, और जो इससे परहेज़ करे। वह राजनीति में टीका-टिप्पणी करने योग्य नही है। ख़बरे कितने लिखे जाएं, इसका भी सहूर उनसे सीखना चाहिए जो बजरंगबली का फ़ोटो दिखाकर डराते हैं। भगवान की तस्वीर के आगे हम सब नतमस्तक हैं, अपितु पंजाब में केजरीवाल की तरह डराकर ललकारना कहां तक न्याय संगत है। वह पंजाब की चुनावी फ़िजा थी, और यह अनूपपुर की चुनावी फ़िजा है। दोनों के चुनावी फिज़ाओ में ज़मीन-आसमान अन्तर है। अगर रमेश को लगता है कि बजरंगबली की सारी कृपा उनमें आकर ठहर गया है, तो रमेश को त्वरित ही अपना चुनावी अभियान को विराम देकर, स्वयं विश्राम करना चाहिए। रमेश कहते है कि-हमारे ख़िलाफ़ भ्रामक ख़बरे चलाई जा रही हैं। कौन चला रहा, कौन लिख रहा है इसका स्पष्टीकरण जब एक पत्रकार ने मांगा तो वह नेता बन गए हैं; इसके भ्रम में वह अपनी प्रतिक्रिया नही दिए। दरअसल बात यह है कि रमेश के इर्दगिर्द विशाल भ्रामक ख़बरों के संचालक मंडराते हैं, वह स्वयं इस बात अंजान बने बैठे हैं। और रमेश यह क्यों नही कहते कि जिन सूत्रधारों के माध्यम से कांग्रेस से रमेश को टिकट दिलाने की घोषणा हो रही है, उन्हें पत्रकारिता में तमीज़ लाज़मी है। और अगर उनके पत्रकारिता कोष में तमीज़ लाज़मी नही है, तो ऐसे पत्रकारों को अपनी पत्रकारिता में तब्दीली लानी चाहिए।
ज्ञातव्य हो कि राजनीति एक ऐसा कार्य है, जो किसी के पल्ले पड़ना सम्भव नही है। पर जिनके पल्ले पड़ जाए उन्हें राजनीति में तमीज़ होना भी जरूरी है। अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव में रमेश प्रशासनिक सेवा से कूदते-फांदते हुए राजनीति में तो आ गए, अपितु राजनीति में बने रहने की तमीज़ लाना भूल गए। जो अब स्वयं तमीज़रहित होकर अनूपपुर के पत्रकारों को ख़बरों के चयन में बांटेंगे। जिस दिन रमेश ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कहा कि हम फॉर्म-बी तक प्रतीक्षा करेंगे, और टिकट प्राप्त करेंगे। इस पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर कांग्रेस पार्टी रमेश को फॉर्म-बी तक टिकट दे भी देती है; तो वह टिकट के बाद क्या राजनीति में बने रहने का तमीज़ ले आएंगे। या अनूपपुर नगर के कुछ बुद्धिजीवियों के बलबूते विरुदावली लिखवाने से तमीज़ इज़ात हो जाएगा। बहरहाल रमेश जिस जोगी की राह में चल पड़े हैं, उस जोगी को राजनीति में बने रहने की तमीज़ थी। रमेश को इस बात की तासीर नही है कि जोगी आदिवासियों के नेता नही बन पाए थे, और ना ही आदिवासियों ने जोगी को अपना नेता स्वीकार किया था। फिर यह कैसे सम्भव है कि रमेश अपने आपको आदिवासियों का मसीहा घोषित कर देंगे। उन्हें ज्ञात हो कि राजनीति में सबसे जरूरी है तमीज़ जो कि अनूपपुर विधानसभा की जनता हाथों-हाथ लेती है। और तमीज़ को हाथों-हाथ लेने की वज़ह भी है, क्योंकि जनता अपना नेतृत्वकर्ता चुनने जा रहे हैं, कलेक्टर या एसडीएम नही। अब चूंकि जिन बुद्धिजीवियों के कंधे में बन्दूक रखकर रमेश चला रहे हैं, वह कंधा पूर्व में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में इतना टकरा चुका हैं कि वह कन्धे बूढ़े हो गए। ज्यादा भार अगर रमेश उस कंधे में देते भी हैं, तो अंततः नुकसान रमेश का ही है। जिसमें कन्धा तो लहूलुहान होगा ही चुनाव के दरमियान चलाने से चुनावी बंदूक की नली भी फट जाएगी। और अंतिम बात यह है कि जिन पत्रकारों को पत्रकारिता में ख़बरों पर तमीज़ सीखनी हो, वह पत्रकार रमेश सिंह से तालमेल क्यों नही बनाते, और जिनके तालमेल हैं भी; तो क्या उन पत्रकारों को पत्रकारिता की तमीज़ है।
जिन पत्रकारों को पत्रकारिता में ख़बरों पर तमीज़ सीखनी हो, वह पत्रकार रमेश से तालमेल क्यों नही बनाते ?
Reviewed by dainik madhur india
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4:04 AM
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