....रमेश भाई लगता है पिक्चर बहुत देखते हैं ? -राजकमल पांडे

....रमेश भाई लगता है पिक्चर बहुत देखते हैं ?
 -राजकमल पांडे
अनूपपुर/राजकमल पांडे। पिक्चर देखना अच्छी आदतों में एक है, इसके फ़ायदे तो कई है पर सबसे लाभदायक दिमाक को आराम मिलता है। व अच्छे कामों से मन भटका रहता है। अपितु फिल्माई दुनिया को निजी जीवन मे उतार लेना सबसे मूर्खतापूर्ण कार्य है। और ऐसा ही कार्य हमारे रमेश भाई कर बैठे, सबसे पहले तो वह चुनाव लड़ने की मंशा ज़ाहिर करना, और दूसरा फ़िल्मी स्टार की तरह प्रशासनिक पद से इस्तीफा देकर चुनावी रण में उतर जाने का है। अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव न हुआ, घर-घर से एक प्रत्याशी खड़ा करने का अवसर हो गया। फिर भले ही उन प्रत्याशियों को जनहित मुद्दों से कितना लेना देना हो यह मायने नही रखता, पर अपना वाला बल्लम शतक ही लगाएगा इस भ्रम में जीना भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रेस पार्टी ने अनूपपुर विधानसभा उपचुनाव में विश्वनाथ पर मोहर लगाकर उपचुनाव का शंखनाद कर दिया और विश्वनाथ को पार्टी टिकट देकर एक बात तो स्पष्ट कर दिया है कि ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की बकत आज भी राजनीति में शेष है। पर अनूपपुर के कुछ अधकचरे बुद्धिजीवि यह स्वीकारना नही चाहते हैं, वह चाहते हैं कि अपना वाला बझड़ा ही भाजपा वाले हाथी से लड़ाएंगे, और वह जीतेगा। अपितु रमेश भाई के जो समर्थक हैं, वह इस बात से बेख़बर हैं कि वह ख़ुद कभी पंचायत का चुनाव नही लड़े हैं और न कोई जीत हासिल की है फिर डेढ़ लाख की आवादी वाला अनूपपुर विधानसभा पर रमेश व उनके एक दर्जन समर्थक बिसाहूलाल का बाल न बांका कर सकेंगे। विश्वनाथ कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता हैं, और पार्टी उन पर विश्वास न जताकर कल के आए रमेश को टिकट देकर पहले ही हार का स्वागत करें। यह बात ज्यादा अपिलात्मक है कि मध्यप्रदेश के अन्य विधानसभाओं के मुक़ाबले अनूपपुर विधानसभा बहुत पिछड़ा हुआ क्षेत्र है, विकास को पटरी में लाने के लिए 17 वर्ष व्यतीत हो गया पर आज तक विकास पटरी में न आया। पार्टी पर सक्रिय प्रत्याशी ही विकास को रफ़्तार दे सकता है। रमेश को अगर चुनाव लड़ना ही था, पद से इस्तीफा दे ही चुके हैं तो यह कार्य टिकट तय होने के पूर्व किया जाना चाहिए था। टिकट तय होने के बाद रमेश और उनके समर्थक जिस तरह उझलकूद मचाए हैं;  इससे एक बात तो साफ़ हो जाता है कि अनूपपुर विधानसभा में विकास के इतर किसी निजी लाभ के लिए चुनाव लड़ा व लड़वाया जा रहा है। इसके पीछे की वज़ह लगभग अनूपपुर विधानसभा की जनता को अच्छे से ज्ञात है, बावजूद इसके रमेश व रमेश के समर्थक ख़ुद को चाणक्य समझते हैं। अगर रमेश व रमेश के समर्थक अपने पर इतना ही विश्वास रखते हैं कि वह बिसाहूलाल को चुनाव में पटखनी दे सकेंगे तो निःसंदेह रमेश को निर्दलीय चुनाव लड़ लेना चाहिए और बिसाहूलाल को चुनाव हराकर दिखाना चाहिए। दरअसल बात यह है कि रमेश व रमेश के समर्थक बिसाहूलाल को चुनाव में हरा पाते हैं के नही यह तो वक्त तय करेगा, अपितु विश्वनाथ को उनसे पूछे वग़ैरह टिकट क्यों दे दिया गया यह खीझ उन्हें जीने नही दे रहा है। प्रशासनिक पद से इस्तीफा देकर रमेश अगर जनसेवा करना चाहते हैं, तो यह बात बहुत हास्यास्पद है। क्योंकि जनसेवा करने के लिए प्रशासनिक पद से अच्छा कोई कार्य हो ही नही सकता है। फिर ऐसे में राजनीति का कवच ओढ़ लेना एक बहाना ही तो माना जाएगा। जिसे स्वयं रमेश कितना भी छुपा लें छुप नही पाएगा।
             इस उपचुनाव के राजनीतिक उठापटक में एक बात निकल कर सामने आया है कि वर्ष 2018 में अनूपपुर विधानसभा चुनाव में रमेश भाजपा से विधायक का टिकट चाह रहे थे, फिर 2019 में शहडोल लोकसभा से सांसद का टिकट मांगने लगे। और अब 2020 विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से पुनः विधायक का टिकट मांग रहे हैं। जब रमेश की स्वयं की कोई विचारधारा नही है, तो कोई भी पार्टी ऐसे विचारहीन प्रत्याशी को टिकट क्यों दे; एक बात ? और दूसरी बात अगर रमेश की स्वयं की कोई विचारधारा होती, तो वह 14 वर्ष शासन को सेवा देकर, राजनीति में जनसेवा का लबादा न ओढ़ लेते। प्रशासनिक पद से इस्तीफा देकर राजनीति में उतर आना उनका निजी फ़ैसला है, अपितु अनूपपुर विधानसभा की भोली भाली जनता के ऊपर रमेश के समर्थक ज़बरन प्रत्याशी लादने से क्या परहेज़ कर रहे हैं। और जनता पर ज़बरन प्रत्याशी लादने का निर्लज्ज तमाशा यहां के मिडियोकर देख रहे हैं, और दर्शकदीर्घा में बैठ कर तालियां पीट रहे हैं। बहरहाल अक्ल गुम होने की ख़बर किसी को हो न हो पर रमेश के समर्थकों को तो है, पर रमेश भाई इस बात से स्वयं बेख़बर हैं। क्योंकि रमेश भाई फिल्माई दुनिया से घिर चुके हैं। रमेश की मंशा मात्र विधायक व सांसद बनने की है, विधायक हुए तो मुख्यमंत्री तक की दौड़ और सांसद हुए तो प्रधानमंत्री तक की दौड़। उन्हें विधानसभा, नगर, गांव, कस्बा के उत्थान की क्या पड़ी है; और अगर रमेश स्वयं को अनूपपुर विधानसभा का श्रावण कुमार समझते हैं, तो यह दायित्व उनके समर्थकों का है कि वह रमेश को समय रहते आईना दिखा दें वगरना देर हो जाएगी, लुटिया डूब जाएगी, कश्ती मझधार में फंस जाएगी। क्योंकि समुद्र में बिसाहूलाल और विश्वनाथ का जहाज़ उतर चुका है। और अगर विश्वनाथ का जहाज़ कांग्रेस पार्टी खींच भी लेती है, तो भी बिसाहूलाल के जहाज़ के आगे रमेश का जहाज़ धरासाई हो जाएगा। मतलब साफ़ है कि 10-15 हजार वोट से रमेश को बिसाहूलाल समेट देंगे। और वहीं विश्वनाथ अन्तिम तक बिसाहूलाल को टक्कर दे सकते हैं, और यह बात बिसाहूलाल को अच्छे से ज्ञात है। रमेश को चुनावी रण में उतार कर अगर बिसाहूलाल को एकतरफ़ा जीत दिलाना चाह रह हैं, तो ऐसे मरणशील राजनीतिज्ञों को राजनीति पर चुनौती स्वीकारना न आया है और न आएगा। शायद यह बात ग़लत हो, पर यह राजनीति है कहा नही जा सकता कि कौन विभीषण है और कौन मेघनाद ?
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